व्हाट्साप: नई पॉलिसी है ‘ख़तरे की घंटी’, भारत में कोई क़ानून नहीं

इफ़ यू आर नॉट पेइंग फ़ॉर द प्रोडक्ट, यू आर द प्रोडक्ट.’’ यानी अगर आप किसी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने के लिए पैसे नहीं चुका रहे हैं, तो आप ही वो प्रोडक्ट हैं.

अगर आपने हाल ही में नेटफ़्लिक्स पर आई डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘सोशल डाइलेमा’ देखी है तो ये बात आप भूल नहीं पाए होंगे.

‘सोशल डाइलेमा’ में यह बात फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स और ऐप्स के संदर्भ में कही गई थी.

फ़ेसबुक और वॉट्सऐप जैसे प्लेटफ़ॉर्म जिन्हें हम लगभग मुफ़्त में इस्तेमाल करते हैं, क्या वो सचमुच मुफ़्त हैं?

इसका जवाब है-नहीं. ये सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स यूज़र्स के यानी आपके निजी डेटा से अपनी कमाई करते हैं.

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