

बिलासपर–:: श्री गणेश चतुर्थी यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है इस वर्ष यह तिथि 27 अगस्त को है जब विघ्नहर्ता विराजेंगे और 10 दिनों तक घरों पंडालो इनकी सेवा औऱ भक्ति होगी इस दौरान घरों और सार्वजनिक स्थानों पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिनकी मोदक, दूर्वा और शमी पत्र से पूजा की जाती है। उत्सव के अंत में, अनंत चतुर्दशी के दिन, गणेश प्रतिमा को श्रद्धापूर्वक जल में विसर्जित किया जाता है, जिसे विसर्जन कहते हैं। शिवपुराण में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश जी की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी माने जाते है.
नई पीढ़ी को समझना होगा धर्म —बदलते परिवेश में क्या हर हिन्दुओ के घर में मंगलमूर्ति विराजेंगे जैसे सवाल औऱ चर्चा के बिच धर्माचार्य पंडित रजनीकांत शर्मा जी ने समाज औऱ युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए कहा है कि आजकल की युवा पीढ़ी ऐसे घृणित रास्ते पर निकल पड़ी है, जहां पर उनके जीवन में केवल मौज , मस्ती के लिए ही स्थान रह गया है.गणेश उत्सव के पांडालो में हो रहे अवांछित गतिविधियों से हृदय अत्यंत क्षुब्ध होता है लोगों से धर्म के नाम पर चंदा लेकर उसका दुरूपयोग करना युवाओं के लिए सामान्य बात हो गई है विसर्जन में धूम धड़ाम , शराब , नशा न हो तो विसर्जन का औचित्य ही नहीं रह गया है , श्रद्धा और भक्ति का स्थान मनोरंजन ने ले लिया है. रही बात कि क्या हर हिन्दू के घर विराजेंगे विघ्नहर्ता तो इस पर यही कहना चाहूंगा कि जो लोग अपने घरों में गणेश जी कि मूर्ति बैठा रहे वें लोग अपने आने वाली पीढ़ियों को श्री गणेश भगवान जो माता पार्वती कि आज्ञाकारी पुत्र है ने कैसे महादेव को भी भीतर प्रवेश से वर्जित किया था जिसके फलस्वरूप भगवान गणेश जी अपने ही पिता से युद्ध कर बैठे थे महादेव के अत्यधिक क्रोध के कारण युद्ध में गणेश जी का सिर अलग होगया था जिसके बाद माता पार्वती के भयंकर क्रोधित होने पर महादेव ने गणेश को जीवनदान देते हुए गज का सिर लगाकर वरदान दिया था कि आज से सबके विघ्नहर्ता कहलाओगे औऱ प्रथम पूज्य का वरदान दिया कई पौराणिक कथाए है जिसे नई पीढ़ियों को जानना होगा.
मंगल मूर्ति का ना करें वर्जित–: एक औऱ बात है जो कि बहुत महत्वपूर्ण है अक्सर सुनने को मिलती है कि जिनके यहां परिवार में गणेश उत्सव के मध्य में किसी की मृत्यु हुई है वे अपने घर में गणेश जी को रखने से कतराते हैं कि कैसे रखें ?. इसी दिन हमारे घर में अनहोनी हो गई थी तो उनके लिए स्पष्ट कर दूं कि नियम तो बहुत सारे हैं जिसका पालन करना सामान्य मनुष्यों के बस की बात नहीं है. जीवन मृत्यु ईश्वर के हाथ में जो आया उसको जाना होगा एक दिन किन्तु इसमें घर में विराजे मंगलमूर्ति का कोई दोष नहीं यदि ऐसे घरों में श्री गणेश जी को वर्जित किया जाएगा तो उन घरों के नई पीढ़ी कभी श्री गणेश जी के महत्त्व को जान ही नहीं पाएंगे औऱ न कभी श्रद्धा औऱ आस्था घरों में पनप पाएगी. घरों श्री गणेश के विराजने से परिवार में भक्ति का माहौल बना रहता है कोई दोषपूर्ण कार्य नशा इत्यादि से परहेज कि मानसिकता बनती है अत: श्री गणेश जी को स्थापित करने के लिए कोई बंधन नहीं है , वह स्वयं विघ्न विनाशक स्वामी जी हैं …उनको प्रेम से अपने घर में लाकर सामर्थ्य अनुसार 3,5,7,9 दिन रखना ही चाहिए.
पंचक विघ्नहर्ता केलिए लागु नहीं होता –::लम्बोदर स्वामी श्री गणेश जी का विसर्जन के समय लोगों के मन में पंचक का ख्याल आता है , वह पूर्ण रूप से अशोभनीय है, क्योंकि पंचक का विचार मनुष्य की मृत्यु के समय किया जाता है और जो स्वयं प्रथम पूज्य हैं उनके लिए भला पंचक का विचार क्यों …? श्री गणेश जी के नाम लेने मात्र से ही अशुभ मुहूर्त भी शुभता में परिवर्तित हो जाता है ,, इस हेतु श्री गणेश जी के लिए पंचक का विचार हृदय से निकाल देना चाहिए …
अब पुन: एक चर्चा पांडाल में फैली गंदगी को रोकने के लिए धर्माचार्य ने युवा वर्ग से अपील कि है कि अपनी व्यक्तिगत मौज मस्ती के लिए धर्म का अपमान कतई नहीं करना चाहिए …पैसे पर्याप्त हैं तो श्री गणेश जी की विधिवत् पूजन व्यवस्था में लगाना चाहिए प्रतिदिन पूजन कराने वाले पंडितों को दक्षिण , वस्त्र देकर प्रसन्न करना चाहिए ..अच्छे प्रसाद फूल माला, इत्र , गंध, धूप बत्ती में खर्च करते हुए , सात्विक विचारधारा को रखकर उत्सव को मनाना चाहिए ….क्योंकि पूजा विधिवत् संपादित करने से भगवान श्री गणेश जी वांछित फल की प्राप्ति अवश्य कराते हैं.