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सागवान पेड़ों की अवैध कटाई जोरों पर पत्थलगांव की सीमा से लगे…..?

रायगढ़ /जशपुर : सागवान पेड़ों की अवैध कटाई जोरों पर चल रही विभाग के आला अधिकारी अपनी आँख बद कर रखे है तस्करों के  हौसले बुलंद है या यूं कहें कि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी सह के बिना अवैध पेड़ की कटाई का माया जाल काफी तेजी से फल फूल रहा है मिली जनकारी के अनुसार पत्थलगांव की सीमा से लगे बााकारूूमा वन परिक्षेत्र जो धरमजगढ़ वन मंडल अंतर्गत आता है बाकरूमा से धरमजगढ़ के बीच ग्राम नोनई जोर दाहीङांङ मुख्य मार्ग पर 60, 70 वर्षों पूर्व सैकड़ो एकड़ में रोपित सागवान प्लांटेशन से परिपक्व मोटे पेड़ों की अवैध कटाई धडल्ले से गांव के आसपास बसे वन माफिया द्वारा की जा रही है प्रकृति के संतुलन को बचाने के लिए एक पेड़ मां के नाम अभियान में पुरा देश लगा हुआ है वही 50 साल से पूर्व रोपे गए इन सागौन के मोटे पेड़ों की अवैध कटाई मुख्य मार्ग के किनारे लगातार जारी है ताजूब की बात है

अक्सर बाकारुमा परिक्षेत्र एवं संबंधित उपवन मंडल लैलूंगा के कर्मचारी व अधिकारियों को धरमजयगढ वन मंडल विभागीय कार्य हेतु इसी मुख्य मार्ग से ही गुजरना पड़ता है उसके बाद भी इन जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इस अवैध कटाई को नजरअंदाज कर दिया जाता है जिससे वन माफिया का हौसला बुलंदी पर है व मोटे और बड़े पेड़ों की कटाई रात के अंधेरे में इलेक्ट्रॉनिक औजारों से की जा रही है जिससे सागौन के घने जंगल सिमटते जा रहे हैं यह जिम्मेदार अधिकारी अक्सर अपने कार्यालय से महीनो गायब रहते हैं, पूछे जाने पर अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा रटा रटाया एक ही जवाब दिया जाता है कि साहब दौरे पर गए हैं ,जंगल ऑफिस में जंगल राज कायम है टेबल पर शासकीय फाइलों के लगे अंबार को अधिकारी द्वारा आने पर एक ही दिन में निपटा दिया जाता है

इस अवैध कटाई पर रोक लगाना तो दूर है बल्कि जिम्मेदारी से बचने के लिए अवैध कटाई के ठूंठ को छिपाने के लिए ठुंंठ को धरती लेवल से काटकर उन्हे पेड़ की टहनियों या पत्तों से ढक दिया जाता है जिसका जीता जाता उदाहरण फोटो में देखा जा सकता है फोटो में स्थित सागौन के ठुठ को पत्तों से ढका गया था पत्तों को हटाकर ठूंठ के फोटो को हमारे संवाददाता द्वारा कैमरे में कैद किया गया है ,जंगल विभाग में चोर चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर काम चल रहा है पौधारोपण एवं बिगड़े जंगल सुधार आदि कार्य के लिए शासन से करोड़ों रुपए का आवंटन प्राप्त होता है जिसमें अक्सर ज्यादातर राशि भ्रष्टाचार के भेंट चढ़कर अधिकारियों की जेब में चली जाती है सारा कार्य फर्जी तौर पर दर्शाया जाता है जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है जिससे जानने की कोशिश कोई अधिकारी नहीं करता। सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की गाइडलाइन के बाद भी वन भूमि पर अतिक्रमण धड़ल्ले से हो रहा है जिसको देखने वाला कोई नहीं है यदि कोई उक्त बातों की शिकायत करता है तो शिकायत को या तो रद्दी में डाल दिया जाता है या उसे झूठी शिकायत साबित कर मामला दाखिल दफ्तर कर दिया जाता है ।

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