न्यूज़रायगढ़

हर बात का विरोध से गिर रहा राजनीति स्तर राजनीति की शुचिता के लिए आमजन क्यों नहीं आते आगे

जी-20 के सफल आयोजन के लिए प्रधानमंत्री, उनकी टीम से लेकर प्रत्येक देशवासी को बधाई। इसमें महज केंद्रीय सरकार, उनके मंत्रीगण, सहयोगी ही नहीं पूरे देशवासियों की दिल से निकलती दुआएं भी काम कर रहीं थी। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजन इससे पूर्व भी सरकारों द्वारा आयोजित किया जाता रहा है लेकिन जी20 का कार्यक्रम जिस भव्यता और गरिमा से आयोजित किया गया है वह अद्भुत और बेमिसाल रहा। देश के विभिन्न राज्यों मे भी सफलतापूर्वक इसका आयोजन हुआ। उसमे अन्य देशों से आए अतिथियों ने अहम मुद्दों के साथ-साथ उन राज्यों की सांस्कृतिक विरासत को भी साझा किया जो हमारे देश की “विविधता में एकता” मूलमंत्र को चरितार्थ करती है। इसका संपूर्ण श्रेय देश के लीडरशिप को ही जाता है अन्यथा ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन दिल्ली तक ही सीमित रहता था। शुक्र है इंटरनेट के जरिये युवा पीढ़ी ने इसे जाना और हम जैसी पीढ़ी के लोगों ने भी मन मष्तिष्क में जमी मानसिक गुलामी और संकुचित दायरों से उबरकर पहली बार देश की भव्यता के साक्षी बने।
पृथ्वी पर मौजूदा सभी प्राणियों में निस्संदेह मनुष्य सबसे बुद्धिमान और विवेकवान है। भाषा जो अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है के लिहाज से भी मनुष्य संसार का समृद्ध प्राणी है उसमें न केवल कला संगीत और साहित्य के क्षेत्र में पहचान बनाई बल्कि तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में नई ऊँचाईयां भी  हासिल की। यदि हमारे पास अपना गौरवशाली अतीत है तो 21 वीं सदी में दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था होने का गौरव भी।  आजादी के 75 वर्षों के बाद अमृतकाल में जब हम समाज को विकास के रास्ते बढ़ते देख रहे हैं तो लगभग उसी गति से मानवीय मूल्यों का क्षरण भी दिख रहा है। निजी स्वार्थों को लेकर ईर्ष्या-द्वेष और छल- कपट जैसे विकार हमारे सामाजिक परिवेश को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं। जिनका प्रभाव हमारे सांस्कृतिक अस्मिता पर भी पड़ रहा है। समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले हमारे चंद नेता जिस तरह की भाषा का उपयोग कर हमारे धर्म और आस्थाओं पर चोट पहुंचा रहे हैं तो सवाल उठता है क्या यह महज सत्ता को हथियाने के लिए किया जा रहा है? ताज्जुब है कि सामाजिक समरसता को भंग करने वाले ऐसे बयानों पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी चुप्पी साध लेता है जबकि बेहद साधारण मामलों में तत्काल कार्यवाही हो जाती है।
राजनीतिक प्रतिद्वंदता बुरी नहीं एक सशक्त विपक्ष का होना लोकतंत्र में बहुत जरूरी भी है। लेकिन वर्तमान में जिस विकृत या घटिया भाषा का प्रचलन चल रहा है वह निस्संदेह चिंतनीय है। किसी भी धर्म की तुलना डेंगू-मलेरिया-एचआईवी-कोरोना इत्यादी जैसी बीमारी से  करना मानसिक रूप से बीमार मस्तिष्क की उपज है और किसी धर्मग्रंथ का अपमान करना मानसिक विकलांगता का उदाहरण। वह भी एक वर्ग विशेष के धर्म से और वह भी महज सत्ता पाने के लिए। इतनी छूट इस देश के लोकतंत्र में कभी नहीं रही कि आप अपने ही देश के मुखिया को घृणित विशेषणों से शोभित करें या उनकी हर बात का विरोध करना अपना मूलमंत्र मान लें। जिस देश के प्रांतो से लेकर शहरों के नाम बिना किसी शिकायत के बदले जा चुके हैं वहीं महज के देश के नाम पर ऐसा हाहाकर मचाना उचित नहीं। जबकि अब तक ऐसा कोई प्रस्ताव पारित भी नहीं हुआ है। देश जब अमृतकाल के दौर से गुजर रहा है तो ऐसा विष वमन कर क्या विपक्ष अपनी गरिमा को खंडित नहीं कर रहा? वह भी ऐसे मौके पर जब विश्व के शीर्षस्थ नेता बेहद अहम मसलों पर चर्चा के करने के लिए आपके देश में मौजूद हों। अतिथि देवो भव की परम्परा को मानने वाला देश है यह।इससे भी ज्यादा दुखद पहलू यह है कि ऐसे मामलों को लेकर देश के बहुसंख्यक नागरिक राजनीति को गंदी कह तटस्थता का आवरण ओढ़ किनारा कर लेते हैं। जबकि सच यह है कि इसी राजनीति में अटल बिहारी बाजपेयी, लाल बहादुर शास्त्री, टी रामाराव,लोहिया, जय प्रकाश नारायण जैसे कद्दावर नेता भी रहे जिनकी भाषाई शुचिता पर कभी कोई ऊंगली नहीं उठी। आज देश के नागरिकों का यह राष्ट्रधर्म है कि देश की राजनीति में धीरे-धीरे जगह बना रही विकृतियों के खिलाफ आवाज उठाएं। यदि जरूरत हो तो राजनीति में जाएं लेकिन अफसोस हम बेहद आत्मकेंद्रित हो चुके हैं।आत्मकेंद्रियता बुरी नहीं लेकिन उसकी चेतना की मूलबिंदु में यदि राष्ट्रप्रेम मौजूद नहीं तो आपका नागरिक होना ही निर्रथक है।
इसी परिप्रेक्ष्य में जनरल और देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत का यह कथन कि आज पूरा देश ढाई मोर्च पर लड़ रहा है। पहला और दूसरा मोर्चा तो स्पष्ट हैं किन्तु जिस आधे मोर्च की ओर उनका इशारा है वह उन दोनों मोर्चों से कहीं जादा घातक और खतरनाक है।उस पर फौज के साथ साथ इस देश के नागरिक समाज को भी सोचना और कुछ करना भी होगा।
आशा त्रिपाठी, रायगढ़

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button