
रायपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सल मोर्चे पर सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता मिली है। पिछले दो दिनों में 170 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है, जबकि बुधवार को भी 27 नक्सलियों ने हथियार डाल दिए थे। इतना ही नहीं, महाराष्ट्र में भी 61 नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा अपनाई है। इस प्रकार, दो दिनों में कुल 258 वामपंथी उग्रवादियों ने हथियार छोड़ दिए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे एक “ऐतिहासिक घटनाक्रम” बताते हुए कहा कि यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही नीतियों और सुरक्षा बलों के सतत अभियानों की सफलता का परिणाम है। उन्होंने कहा, “मैं उन सभी का अभिनंदन करता हूँ जिन्होंने संविधान और लोकतंत्र पर विश्वास जताते हुए हिंसा का त्याग किया। हमारी नीति स्पष्ट है — जो आत्मसमर्पण करेगा उसका स्वागत होगा, और जो बंदूक उठाएगा उसे हमारे बलों के प्रकोप का सामना करना पड़ेगा।”
अमित शाह ने कहा कि छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर क्षेत्र, जो कभी नक्सल आतंक का केंद्र माने जाते थे, अब आतंक मुक्त घोषित किए जा चुके हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि दक्षिण बस्तर में बचे हुए नक्सली अंश भी जल्द समाप्त कर दिए जाएंगे।
जनवरी 2024 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक छत्तीसगढ़ में 2100 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, 1785 गिरफ्तार हुए हैं और 477 मुठभेड़ों में मारे गए हैं। अमित शाह ने दोहराया कि केंद्र सरकार का लक्ष्य 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करना है।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति
छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्रीय सुरक्षा बल पिछले कुछ महीनों से नक्सल प्रभावित इलाकों में एरिया डॉमिनेशन, ताड़पाला बेस कैंप विस्तार, और पुनर्वास नीति जैसे अभियानों को समन्वित तरीके से चला रहे हैं। आत्मसमर्पण करने वालों को आर्थिक सहायता, रोजगार अवसर, आवास और कौशल प्रशिक्षण जैसे प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
सरकार का दावा है कि आत्मसमर्पण की यह लहर न केवल नक्सली संगठन को कमजोर करेगी, बल्कि ग्रामीण इलाकों में शांति, विकास और विश्वास के माहौल को भी मजबूत करेगी। प्रशासन ने यह भी कहा है कि शांति स्थापित होने के बाद प्रभावित क्षेत्रों में सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं को और तेजी से बढ़ाया जाएगा।
विशेषज्ञों और विपक्ष की राय
सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार यह आत्मसमर्पण अभियान, सरकार की सुरक्षा रणनीति और संवेदनशील पुनर्वास नीति दोनों का संतुलित परिणाम है। हालांकि, उन्होंने चेताया कि अगर पुनर्वास योजनाओं का क्रियान्वयन पारदर्शी और समयबद्ध नहीं हुआ, तो स्थायी शांति का लक्ष्य अधूरा रह सकता है।
विपक्षी दलों ने भी इस घटनाक्रम का स्वागत किया, लेकिन साथ ही कहा कि यह “वास्तविक जीत” तभी मानी जाएगी जब नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास, न्याय और शासन की उपस्थिति स्थायी रूप से दिखाई देगी।
आगे की राह
केंद्र और राज्य सरकार अब आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन पर विशेष ध्यान दे रही हैं। अमित शाह का स्पष्ट संदेश — “31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद का पूर्ण उन्मूलन” — इस अभियान की दिशा और दृढ़ता को दर्शाता है।
अब नज़र इस पर रहेगी कि सरकार पुनर्वास योजनाओं को कितनी गति और पारदर्शिता से लागू करती है, क्योंकि यही तय करेगा कि यह केवल आंकड़ों की सफलता है या बस्तर की धरती पर स्थायी शांति का आरंभ।