
बार नवापारा नहीं बन सकेगा बाघों का घर: एनटीसीए ने दूसरे राज्यों से बाघों को लाने का अनुरोध ठुकराया; कहा- ये सिर्फ सामान्य जंगल
रायपुर से 85 किलोमीटर दूर बार नवापारा के जंगलों में मार्च से भटक रहे नर बाघ को आखिरकार यहां बसने की अनुमति नहीं मिली। 9 महीने से वन विभाग की टीम उसकी निगरानी कर रही थी। बाघ की सुरक्षा के लिहाज से जंगल के कई रास्ते आम लोगों के लिए बंद कर दिए गए।
एनटीसीए के विशेषज्ञों ने यहां तक कह दिया कि- टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में वन विभाग बाघों को सुरक्षा नहीं मिल रही है। ऐसे में हम ऐसे जंगल जो टाइगर रिजर्व नहीं है, वहां बाघ बसाने की अनुमति कैसे दे सकते हैं? यही वजह है कि मंगलवार को बाघ को ट्रैंक्युलाइज गन से बेहोश करने के बाद बार नहीं लाया गया। रातों रात गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट के जंगलों में छोड़ा गया।
बड़ा सवाल- भटक रहे बाघ का क्या होगा? अफसरों के पास जवाब नहीं
बार में नए बाघों की एंट्री करवाने की मंजूरी नहीं मिलने के बाद जंगल में भटकर रहे इकलौते बाघ के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। अफसर इस बारे में कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। अलबत्ता बाघ को ट्रैंकुलाइज कर उसे कॉलर आईडी पहना दी गई, ताकि 24 घंटे निगरानी की जा सके। बारिश के पहले भी बाघ के गले में कॉलर आईडी पहनाने के प्रयास किए गए थे। इसके लिए सरगुजा से बाकायदा कुमकी हाथी बुलाए गए, लेकिन बारिश ज्यादा होने के कारण हाथी मिट्टी में फिसलने लगे और उस ऑपरेशन को टालना पड़ गया था।
कूनो की तर्ज पर बसाने का प्लान था
वन विभाग यहां राजस्थान के कूनो की तर्ज पर बाघों को बसाने का प्रोजेक्ट लॉन्च करने की तैयारी में था। इसके लिए देश के कई टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट से संपर्क कर वहां से बाघ व बाघिन मांगे गए थे। ताड़ोबा नेशनल पार्क से तीन बाघिन और एक बाघ मांगे गए थे। इसकी मंजूरी वहां के पार्क प्रबंधन ने दे भी दी थी।
दो बार सर्वे किया था टीम ने बार नवापारा में बाघों को बसाने का प्लान बनाने के बाद एनटीसीए को पत्र लिखकर सर्वे के लिए बुलाया गया था। एनटीसीए की टीम दो बार बार नवापारा का सर्वे करने पहुंची। चूंकि बार के जंगलों में हिरण, चीतल खासी संख्या में हैं। यानी वे आसानी से शिकार कर सकते हैं। इसलिए उम्मीद थी कि ये बाघों का नया बसेरा बन सकेगा।
अफसरों ने दी सफाई- कहा एरिया छोटा है
बार का जंगल 364 वर्ग किमी किमी है। एनटीसीए के अफसर इसे बाघों के लिए पर्याप्त नहीं मान रहे हैं। इसी वजह से हमें यहां बसाने की मंजूरी नहीं मिली है।
–प्रेम कुमार, एपीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ