UN में तालिबान को बैठाने की मांग के पीछे भी पाक का हाथ, भारत ने यूं बर्बाद किया प्लान

Taliban की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एंट्री के लिए पाकिस्तान पूरा जोर लगा रहा है। पहले एससीओ में तालिबानी प्रतिनिधित्व को लाने की कोशिश की गई। बात नहीं बनी तो सार्क विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए पाकिस्तान ने तालिबानी प्रतिनिधित्व की मांग पुरजोर तरीके से उठाई। सार्क देशों ने भी पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया। बैठक इसी वजह से रद्द हो गई।

अब यूएन में तालिबान के प्रतिनिधि को मान्यता देने की मांग के पीछे भी पाकिस्तान का ही दिमाग बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि तालिबान को लेकर दुनिया की आशंकाओं के बीच पाकिस्तान की पैरोकारी उसके भी इरादों पर सवाल खड़ा कर रही है। फिलहाल भारत पुरजोर तरीके से पाकिस्तान की कवायद का विरोध कर रहा है। भारत के ठोस तर्क के आगे अभी तक पाकिस्तान की दाल गलती नहीं नजर आ रही है।

आईएसआई की वर्चस्व जमाने की रणनीति
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान की आईएसआई पूरी तरह से तालिबानी शासन पर अपना वर्चस्व जमाने की रणनीति पर काम कर रही है। पाकिस्तान ने तालिबान को भरोसा दिया है कि वह उसकी आवाज वैश्विक स्तर पर मुखर करेगा। तालिबानी व्यवस्था में पाकिस्तान समर्थक चेहरों को ज्यादा तरजीह दिलाने के लिए भी पाकिस्तानी एजेंसी शुरू से प्रयासरत रही है।

मान्यता देने के पक्ष में नहीं भारत
सूत्रों ने कहा कि भारत ने एससीओ बैठक के दौरान अपना रुख स्पष्ट कर दिया था। अभी भी भारत का वही रुख है। भारत तालिबान की मौजूदा व्यवस्था को किसी भी तरह से मान्यता देने के पक्ष में नहीं है। अमेरिका यात्रा के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी भारत का स्पष्ट रुख एक बार फिर जाहिर करेंगे। भारत का मानना है कि तालिबान की मौजूदा व्यवस्था को मान्यता देने की किसी भी कवायद से कट्टरपंथ और आतंकवाद बढ़ने का खतरा है।

पाकिस्तान तिलमिलाया
उधर अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को दुनिया से अभी तक मान्यता नहीं मिलने पर पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने कुछ दिन पहले कहा था कि तालिबान शासन को मान्यता देने की ‘वेट एंड वाच’ नीति पूरी तरह से गलत है और इसके परिणामस्वरूप संघर्षग्रस्त देश का आर्थिक पतन हो सकता है। हालांकि दुनिया को दिखाने के लिए पाकिस्तान यह भी जता रहा है कि वह तालिबान पर समावेशी सरकार के लिए दबाव बना रहा है। सूत्रों का कहना है कि अफगानिस्तान के संदर्भ में यूएन की साझा नीति की वकालत कई देश कर रहे हैं। भारत के तर्क को दुनिया के ज्यादातर देशों ने स्वीकार किया है।

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