
नरेश सोनी
दुर्ग। स्थानीय विधायक अरूण वोरा व महापौर धीरज बाकलीवाल की मंशा को पलीता लग गया है। करीब 3 महीने पहले नगर निगम ने जोर-शोर से कुल 54 ब्रांड एम्बेसडर बनाए थे, इनमें से महज 3 लोगों ने ही जमीनी स्तर पर स्वच्छता की अलख जगाने का छिटपुट काम किया है। बाकी के सभी अपने-अपने घरों में या कामकाज में व्यस्त हैं। नगर निगम की मंशा थी कि ये ब्रांड एम्बेसडर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करेंगे, लेकिन विडंबना है कि जो स्वयं जागरूक नहीं हैं, उन्हें स्वच्छता अभियान की मशाल थमा दी गई। हालांकि कई लोग ब्रांड एम्बेसडर बनाए जाने के पीछे राजनीतिक कारण भी देखते हैं।
विधायक वोरा की मंशानुसार महापौर धीरज बाकलीवाल ने फरवरी में ५४ लोगों को ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया था। तब यह आरोप भी लगे थे कि कई आपराधिक किस्म के लोगों को भी ब्रांड एम्बेसडर बना दिया गया है। पिछले ३ महीने की कार्यप्रणाली को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इन ब्रांड एम्बेसडरों के पास शहर के स्वच्छता अभियान को लेकर कोई वि•ान नहीं है। जो कुल जमा ३ लोग कभी-कभार स्वच्छता की मशाल थामकर निकलते हैं, वे भी बहुधा पॉलीथिन पर ही फोकस कर रहे हैं। जबकि शहर की स्वच्छता के लिए सिर्फ पॉलीथिन से मुक्ति के अलावा भी ढेरों विकल्प है। यदि प्रत्येक ब्रांड एम्बेसर एक-एक समस्या को पकड़ लेता तो शायद स्वच्छता अभियान में शहर पहले नम्बर पर होता। किन्तु महापौर द्वारा बनाए और विधायक द्वारा बनवाए गए ब्रांड एम्बेसडर सिर्फ नगर निगम के व्हाट्सएप ग्रुप तक ही सीमित होकर रह गए हैं। इस ग्रुप की स्थिति यह है कि ब्रांड एम्बेसडर इसमें राजनीतिक प्रचार-प्रसार करने लगे हैं। यानी इस स्वच्छता ब्रांड एम्बेसडर दुर्ग नामक ग्रुप का उपयोग सिर्फ आकाओं को खुश करने के लिए हो रहा है। इसके चलते नगर निगम के स्वच्छता अभियान को सर्वोच्चता पर ले जाने की मंशा धरी की धरी रह गई है।
दुर्ग में अब भी स्वच्छता सर्वेक्षण चल रहा है। निगम आयुक्त हरेश मंडावी की सक्तियता के चलते शहर को सुसज्जित और व्यवस्थित करने की कोशिशें खूब हुई है। शहर के प्रत्येक वार्ड में इसका साफ असर दिख भी रहा है। खुद निगम आयुक्त टीम लीडर के रूप में सुबह से ही मोर्चा संभाल लेते हैं। उनकी इसी कार्यप्रणाली के चलते निगम के अधिकारियों-कर्मचारियों में भी सक्रियता बढ़ी है, किन्तु श्री मंडावी को भी खुलकर काम करने की आजादी नहीं है। उन पर कई तरह के राजनीतिक दबाव हैं। इस पर ब्रांड एम्बेसडरों का फिसड्डी रहना भी एक बड़ी समस्या है। निगम के ही जानकारों का मानना है कि ज्यादातर वीआईपी मानसिकता के लोगों को ब्रांड एम्बेसडर बनाने की वजह से ही निगम की मंशा को पलीता लगा है। नगर निगम में दो चरणों में ब्रांड एम्बेसडर बनाए थे। इनमें डॉक्टर, खेलकूद, समाजसेवा, राजनीति और पत्रकारिता से जुड़े लोगों के साथ ही सोशल मीडिया में एक्टिव लोग भी शामिल हैं। इनमें से एक डॉ विश्वनाथ पाणिग्रही ने पॉलिथीन को लेकर सबसे पहले जागरूकता अभियान चलाया था। डॉ. पाणिग्रही का यह अभियान लगातार चल भी रहा है। उनके अलावा नमिता शर्मा व उर्वशी साहू जैसी महिलाएं भी सड़क पर उतरीं। इन्होंने भी पॉलिथीन और स्वच्छता पर ही जोर दिया। इन तीन लोगों के अलावा कोई भी न घर से निकला, न स्वच्छता अभियान की मशाल थामी।
रोजी-रोटी छोड़कर कैसे निकले?
नगर निगम द्वारा स्वच्छता ब्रांड एम्बेसडर बनाए गए एक युवा का साफ कहना था कि वे रोजाना कमाने-खाने का काम करते हैं। ऐसे में रोजी रोटी छोड़कर स्वच्छता के लिए निकलने का सीधा-सीधा मतलब परिवार को भूखे मारना होगा। एक ओर जहां विधायक व महापौर ने ज्यादातर एयरकंडिश्नरों में रहने वालों को ब्रांड एम्बेसर बनाया है, तो इनमें कुछेक गरीब और निम्न आय वर्ग के लोग भी शामिल हैं। ऐसे लोगों को ब्रांड एम्बेसडर बनाए जाने के पीछे क्षेत्र में उनका जनाधार भी है, जो आने वाले दिनों में राजनीतिक फायदा पहुंचा सकता है। हालांकि ब्रांड एम्बेसडर बनाए जाने का मकसद आम लोगों को सफाई का महत्व समझाना और उन्हें जागरूक करना है। तीन महीने पहले जब ब्रांड एण्बेसडरों की नियुक्ति की गई थी, तब दावा किया गया था कि इससे नागरिकों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता आएगी, लेकिन अब तक ऐसा कुछ इसलिए नहीं हो पाया है, क्योकि ब्रांड एम्बेसडर नियुक्ति-पत्र लेकर घरों में बैठे हैं।