इस जगत में अनगिनत मंदिर है पर जितने भी है दो ही प्रकार के हैं = रामरूप दास
*भगवान का मंदिर*
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*इस जगत में अनगिनत मंदिर हैं, पर जितने भी हैं, दो ही प्रकार के हैं*
*एक मंदिर वे हैं जो हमने बनाए हैं, एक मंदिर भगवान ने बनाए हैं*
*हमारे बनाए मंदिरों में हमने अपनी मर्जी से, स्वयं चुनाव करके, धातु या पत्थर की मूर्ति को, ये मेरे भगवान हैं ऐसा मान कर बैठाया है।
भगवान के बनाए मंदिरों में भगवान स्वयं साक्षात बैठते हैं।
हमारे बनाए मंदिर बाहर से कभी साफ किए जाते हों न किए जाते हों, पर भीतर से नियमपूर्वक रोज साफ किए जाते हैं।
जबकि भगवान के बनाए मंदिरों को भीतर से तो कोई विरला ही साफ करता है, पर बाहर से वे नित्य प्रति साफ किए जाते हैं।
हमारे बनाए मंदिरों में भगवान ही प्रमुख है, भगवान के बनाए मंदिरों में भगवान नहीं, मंदिर की दीवारें प्रमुख हैं।
भगवान तो किसी के ध्यान में भी नहीं रहते।
हमारे बनाए मंदिरों में भक्ष्य अभक्ष्य का, शुद्ध अशुद्ध का, विधि निषेध का, करने योग्य और न करने योग्य का, अधिकारी अनाधिकारी का, बहुत विचार होता है।
भगवान के बनाए मंदिरों के विषय में हम ऐसा कोई विचार नहीं करते।
किसी ने शराब पी हो, गुटका तम्बाकू मुंह में दबाया हो, कंधे पर माँस मच्छी से भरा थैला लटका हो, जलती हुई सिगरेट अंगुलियों में फंसी हो, नग्न हो, और हमारे बनाए मंदिरों में प्रवेश कर जाए तो बवाल हो जाए।
भगवान के बनाए मंदिरों में कोई भी कुकर्म हो, हत्या, काम भोग, परधनहरण, कुत्सित योजनाएँ, षडयंत्र, निंदा स्तुति, कुछ भी क्यों न हो, किसी को कोई परेशानी नहीं।
हमारे बनाए मंदिरों में बैठे भगवान बोलते नहीं, भगवान के बनाए मंदिरों में भगवान तो बोलते हैं, पर हम उनकी सुनते नहीं।
मेरा निवेदन है कि और कुछ संभव हो या न हो, कम से कम हमें भगवान के बनाए मंदिरों के विषय में, अपने खान पान का तो विचार करना ही चाहिए। क्योंकि हम जो भी खाकर वहाँ जाते हैं, वह भगवान के सिर, मुखमंडल और संपूर्ण देह पर जा गिरता है।
*हमारा शरीर ही भगवान का बनाया मंदिर है, इसी में भगवान बैठे हैं।*