नक्सलियों से जिंदगी बचाने मां ने घर आने नहीं दिया, 15 साल तक साप्ताहिक बाजार में मिले और गले लगकर खूब रोते थे

छत्तीसगढ़ के बस्तर में माओवादी हिंसा ने कई परिवारों को जिंदगी भर का गम दे दिया है। उन्हें घर द्वार छोड़ना पड़ा। जिंदगी को सहेजने अपनों से दूर करना पड़ा। उन्हीं में से एक है रामनाथ मंडावी, जो 17 साल बाद अब अपने घर में रहेगा। रामनाथ ने कहा- घर क्या होता है यह मुझे पता ही नहीं है। मैंने 21 साल की उम्र तक सिर्फ डर देखा है। नक्सल दहशत की वजह से मेरी मां ने घर आने ही नहीं दिया। साल 2005 में मैं 6 साल का था, जब नक्सलियों ने पूरा घर तबाह कर दिया। लूट का ऐसा तांडव मचाया कि घर से गाय, बकरी, कपड़े, बर्तन यहां तक कि नमक तक लूटकर ले गए। घर में सिर्फ दरवाजा और चार दीवारें ही बची थी। अगले दिन हमारे पास पहनने को कपड़े तक नहीं थे।

अपनी दास्तां बताते हुए रामनाथ मंडावी की आंखों में आंसू छलक पड़े। रामनाथ ने बताया कि 26 फरवरी 2006 को महाशिवरात्रि के दिन परिवार पर एक और पहाड़ टूटा। एसपीओ बड़ा भाई मोहन मंडावी तुलार गुफा से भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर लौट रहे थे, तभी नक्सलियों ने हत्या कर दी। नक्सली दहशत की वजह से मुझे पढ़ाई के लिए 2007 में बालक आश्रम बारसूर फिर भैरमगढ़ पोटाकेबिन इसके बाद मारडूम भेज दिया गया। मैं जिंदा रहूं, इसलिए मां मुझे घर नहीं आने देती थी। जब भी दिल करता हम लोग बाजार में जाकर मिल लेते थे और लिपटकर खूब रोते, लेकिन अब रामनाथ मंडावी घर में रहेंगे। सीएम भूपेश बघेल ने दंतेवाड़ा में भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के दौरान आवासीय परिसर के घर की चाबी रामनाथ मंडावी को सौंपी। सीएम की पहल पर नक्सल पीड़ित एवं नक्सल घटनाओं में शहीद परिवारों के लिए दंतेवाड़ा के कारली में 36 आवास निर्मित किये गये हैं, जिनमें से 30 आवास नक्सल पीड़ित परिवारों को आवंटित किए गए।

नक्सली घर में आकर पथराव करते थे 
सीएम भूपेश बघेल से शासकीय आवास की चाबी पाने के बाद सीमा कर्मा बेहद खुश हैं। सीमा बताती है कि मैं और मां नक्सलियों द्वारा पिता की हत्या के बाद बेहद सदमें में रहे। मेरे पिता गोपनीय सैनिक थे। घटना वाली रात नक्सली दरवाजा तोड़कर घर में घुस आये और पिता को घसीटते हुए ले गए। हम लोग बहुत गिड़गिड़ाए, लेकिन पिता को नहीं छोड़ा। अगले दिन पता चला कि नक्सलियों ने पिता की गला रेतकर हत्या कर दी है। इसके बाद नक्सली हमारे गांव वाले घर में पथराव करते रहे, ताकि हम लोग दहशत से घर छोड़कर चले जायें। मां ने मजदूरी कर हम तीनों भाई-बहन को पाला है। अभी 3  हजार रुपये के किराए के मकान में रहती हूं। अब सरकारी आवास मिल गया है, इससे बहुत राहत मिलेगी। सीमा ने बताया कि अभी अनुकंपा नियुक्ति के तौर पर आरक्षक के तौर पर काम कर रहा हूं। अब नक्सलियों को खत्म करने का ही सपना है।

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