महुआ से चलती है घर की गाड़ी, संपत्ति की तरह पेड़ों का भी होता है बंटवारा, छत्तीसगढ़ में 200 करोड़ का कारोबार

छत्तीसगढ़ का महुआ फूल…। यह पेड़ से गिरने वाला सिर्फ फूल ही नहीं है, बल्कि वनवासियों की जीविका का बड़ा साधन और वनांचल में बसे ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कुदरत ने धरती पर महुआ फूल के सिवाय कहीं ऐसा फूल नहीं बनाया जो कई दिन, कई माह, कई साल तक तरो ताजा रहे। आदिवासी संस्कृति में महुआ फूल को अराध्य देवताओं में तर्पण करने की परंपरा है। गोंड़ आदिवासी अपने देवता पर महुआ का फूल चढ़ाते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में इसका उपयोग होता है। जमीन-जायदाद की तरह आदिवासी परिवारों में महुए के पेड़ों का भी बंटवारा होता है।

सरकारी आंकडों की मानें तो छत्तीसगढ़ में हर साल लगभग 175 से 200 करोड़ रुपये मूल्य का 5 लाख क्विंटल महुआ फूल का संग्रहण होता है। औषधीय गुणों के कारण महुआ की महक छत्तीसगढ़ के साथ देश ही नहीं बल्कि विदेश तक होने लगी है। प्रदेश के वनवासियों को लघु वनोपजों के संग्रहण से लेकर प्रसंस्करण तक फायदा पहुंचाने की योजना भी बनाई गई है। राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा महुआ फल खाद्य योग्य अर्थात फूड ग्रेड महुआ फूल बनाने की प्रक्रिया भी विकसित की है, जिससे वनवासियों को महुआ फूल से ज्यादा आमदनी हो सके। अभी हाल ही में UK के एक निजी कंपनी ने 750 क्विंटल महुआ की खरीदी छत्तीसगढ़ से की है। इससे पहले महुआ फूल की एक खेप छत्तीसगढ़ के कोरबा से समुद्र के रास्ते फ्रांस को निर्यात किया गया था।

महुआ आदिवासियों के लिए कल्प वृक्ष
छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष देवलाल दुग्गा ने बताया कि महुआ आदिवासियों का कल्प वृक्ष है। महुआ का फूल, पत्ता और लकड़ी तक उपयोगी है। आदिवासी महुआ पेड़ की पूजा करते हैं। फूल को बूढ़ादेव में चढ़ाते हैं। महुआ फूल को देवधामी में तर्पण भी करते हैं। आदिवासी संस्कृति में महुआ फूल का बड़ा महत्व है। महुआ से शराब भी बनाते हैं, जो आदिवासी संस्कृति के त्योहारों में उपयोग होता है। महुआ के पत्तों से दोना-पत्तल तैयार होता है। महुआ का फूल गुड़ का भी विकल्प है। सरई बीज के साथ मिलाकर खाने से यह गुड़ का काम करता है। जोंधरा, ज्वार के साथ लाटा बनाकर इसके खाते हैं, जो बेहद पौष्टिक है। कमरछठ में पूजा के दौरान भी महुआ का उपयोग होता है। महुआ का पेड़, फल और पत्ते धार्मिक, औषधीय महत्व के साथ आदिवासियों के जीवकोपार्जन का भी एक बड़ा माध्यम है।

लंबे समय तक रखा जा सकता है महुआ फूल
महुआ फूल की सबसे विशेषता यह है कि इन फूलों को संग्रहित करके लंबे समय तक रखा जा सकता है। छोटे आकार और पीले सफेद रंग में दिखने वाले इन फूलों से कस्तूरी की सुगंध आती है। यह भारतीय वृक्ष है और इसके लकड़ी, फल और फूल से कई औषधियां तैयार की जाती है। महुआ उत्तर भारत के मैदानी इलाकों छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्य में पाए जाते हैं। देश की बड़ी आबादी के आय का यह बड़ा जरिया है। आदिवासी क्षेत्रों से उपज की सरकारी खरीदी और प्रसंस्करण की सुविधा ने वनवासियों के तरक्की की नई राह खोली है। महुआ फूल के निर्यात से किसानों और वनवासी संग्राहकों की आय बढ़ने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती भी मिल रही हैवनवासियों की आय का बड़ा जरिया है महुआ 
महुआ को आदिवासी एकत्रित करते हैं और इन्हें सुखाकर शराब और खाने के कई रूपों में प्रयोग किया जाता है। अभी अप्रैल का महीना चल रहा है। वनवासी अभी महुआ के संग्रहण में जुटे हैं। ज्यादातर आदिवासी परिवार इस पुश्तैनी कार्य में लगे हैं। वनवासी महुआ को बाजार में सीधे बेच देते हैं, लेकिन जब दाम घट जाते हैं तो महुआ का आचार या शराब बनाकर इन्हें बेचा जाता है। आदिवासियों परिवार के घर अगर महुआ का पेड़ है और अगर बंटवारा की नौबत आती है तो स्वामित्व तय होता है। महुआ पेड़ पर स्वामित्व को लेकर हिंसा तक की नौबत आ जाती है। राज्य सरकार द्वारा साल 2022 में 2000 क्विंटल फूड ग्रेड महुआ फूल संग्रहण का लक्ष्य रखा गया है। पहले चरण में 1150 विक्ंटल महुआ फूल 116 रुपये प्रति किलोग्राम दर पर बेचा भी गया है।

महुआ एनर्जी बार, महुआ गुड़ का निर्माण 
प्रबंध संचालक संजय शुक्ला ने बताया कि महुआ फूल को खाद्य योग्य बनाने राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा प्रक्रिया विकसित की गई है। महुआ वृक्ष के चारों ओर संग्रहण नेट बांधकर महुआ फूल संग्रहण किया जा रहा है। महुआ फूल को 10 रुपये (सूखा फूल 50 रुपये प्रति किलोग्राम) प्रति किलोग्राम की दर से राज्य लघु वनोपज संघ खरीद भी रहा है। साफ-सुथरे ताजा महुआ फूल को वनधन केंद्र के सोलाट टनल में सुखाया जाएगा। इस प्रक्रिया से बिना मिट्टी, धूल रहित खाद्य योग्य महुआ फूल का संग्रहण होगा। वर्तमान में यहां महुआ फूल का उपयोग देशी शराब बनाने में वनवासी करते हैं। सीएफटीआरआई मैसूर के सहयोग से महुआ एनर्जी बार, महुआ गुड़ बनाने के तकनीक विकसित की गई है। दुर्ग जिले के पाटन में इससे संबंधित उद्योग भी शुरू की जा रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button