
रायपुर का हाल बेहाल…..गली मोहल्लों बाजारों में भीड़ ही भीड़, मास्क लगाना जैसे याद ही नहीं
रायपुर: सारे दावे एक तरफ राजधानी का हाल एक तरफ, राजधानी का एक चक्कर लगाते ही सब समझ आ जाता है। चाहे हाट बाजार हो या मॉल बाजार छोटा बड़ा हर कोई लापरवाही की मिसाल बनता नज़र आता है। मास्क लगाने पर चालान सिर्फ वाहन सवारों के लिए है, पैदल बगल से खांसता छींकता कोई गुजरे तो कोई फर्क नहीं पड़ता। न कोई उसका चालान करेगा, ना कोई रोक के समझाइश देगा, क्यूँ? क्यूंकि वो तो पैदल था ना। शराब दूकान में तो लगता है जैसे कोरोना दूर-दूर तक नहीं है, एक दुसरे पर चढ़ते लोगों को देख कर किसी के भी होश उड़ जाएं ऐसा होता है शाम का माहौल। नीजी-सरकारी आयोजनों में भी कार्यक्रम की सफलता भीड़ पर ही निर्भर है, तो ऐसे में भला मास्क की अनिवार्यता लागु कर के अपनी भीड़ को कम करने का रिस्क भला क्यूँ ले आयोजक वरना बिना मास्क के लोगों को बाहर करना कौन सी बड़ी बात थी?
ट्रेनों में भी जब तक सीट या अपनी जगह पर नहीं पहुंचे तब तक हल्का मास्क अटका रहता है, उसके बाद धीरे-धीरे मास्क नीचे करने का सिलसिला होता है, जो सबके चेहरे से उतरने के बाद ख़तम होता है। मार्केट के नाम पर राजधानी में एक से एक सुपरमार्केट मिलेंगे जहां पढ़े लिखे लोग अपने बच्चों के साथ सामान लेने आते हैं। पूछो की बच्चे को क्यूं लाए तो जवाब सभी का एक ही मिलेगा घर पर कोई देखने वाला नहीं है। इसी तरह से होटलों, चौपाटी, हर जगह लोगों का हुजूम खतरनाक बेपरवाह रूटीन लाइफ जी रहा।