
आंगनबाड़ीकर्मी : सिर पर दिवाली, हाथ में फूटी-कौड़ी नहीं, आंदोलन न करें तो क्या करें?
रायपुर। छत्तीसगढ़ से कुपोषण को दूर भगाने, बच्चों को शाला पूर्व अनौपचारिक शिक्षा देने, गर्भवती माताओं एवं शिशु को टीकाकरण करने, कोविड-19 की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए निर्वाचन संबंधी भी बेहद जरूरी काम करने वाली आंगनबाड़ीकर्मियों को अब तक सरकार की तरफ से मनमाफिक राहत नहीं मिली है। गुहार तो वे बार-बार, हर-बार लगा ही रही हैं। यही कारण है कि आज फिर बिलासपुर में छत्तीसगढ़ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायता संघ (पंजीयन क्रमांक 409) के द्वारा विशाल रैली एवं धरना प्रदर्शन का आयोजन किया जा रहा है। इस आंदोलन में नियमितीकरण समेत तमाम मांगों को रखा जा रहा है। संघ की प्रांताध्यक्ष सरिता पाठक ने जानकारी दी है कि इस वृहद आंदोलन के साथ-साथ अपनी मांगों को पत्र के जरिए केंद्र सरकार तक भी पहुंचाने जा रही हैं। आपको बता दें कि इससे पहले छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका कल्याण संघ की राजनांदगांव जिला अध्यक्ष लता तिवारी ने भी भारत सरकार को पत्र व्यवहार किया था। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी समेत तमाम संबंधित स्थानों को पत्र लिखकर अपनी मांगे रखी थी। लता तिवारी ने अपने पत्र में कोरोना फ्रंट वारियर्स के रूप में काम करने वाली आंगनबाड़ीकर्मियों को 50 लाख रुपए बीमा योजना का लाभ दिए जाने का आग्रह भी किया था। इस पत्र के जवाब में भारत सरकार ने अब तक दो बार लता तिवारी को लिखित जवाब दिया है। भारत सरकार ने जो जवाब राजनांदगांव की जिला अध्यक्ष लता तिवारी को दिया दिया है, वही जवाब छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव और महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव को भी जारी करते हुए क्रियान्वयन करने कहा है। भारत सरकार के पत्र में स्पष्ट बताया गया है कि बीमा योजना के अलावा और किन-किन केंद्रीय योजनाओं के अंतर्गत आंगनबाड़ीकर्मियों और इसी स्तर की दूसरी मानसेवी कर्मियों को लाभ दिया जा सकता है। वास्तव में लता तिवारी के पत्र लिखने के बाद केंद्र सरकार ने ना केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में काम करने वाली मानसेवी कर्मियों को दी जाने वाली सुविधाओं के प्रति अपनी स्थिति और दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया। लेकिन उनके क्रियान्वयन के स्तर पर राज्यों में रुकावटें अब तक हैं। दरअसल अभी वर्तमान में आंगनबाड़ीकर्मियों में जो मायूसी और आक्रोश देखा जा रहा है, वह मौजूदा कारणों को लेकर है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका कल्याण संघ से जुड़ी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने प्रांताध्यक्ष पद्मावती साहू की अगुवाई में सभी जिलों में अपनी तमाम मांगों को लेकर आंदोलन किया था। जाहिर है, राजधानी में भी बूढ़ा तालाब के पास यह आंदोलन हुआ। राजधानी के उस आंदोलन स्थल पर पहुंचकर संचालनालय के आला अफसरों ने आश्वस्त किया था कि ज्यादातर मांगें विचारणीय या प्रक्रियाधीन हैं, लेकिन हड़ताल और बर्खास्त अवधि का रुका हुआ भुगतान तथा एरियर्स का भुगतान 10 दिनों के भीतर कर दिया जाएगा। साफ है कि इस आश्वासन से आंदोलनकारी आंगनबाड़ीकर्मियों को कुछ तो राहत की उम्मीद मिली होगी, लिहाजा छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका कल्याण संघ ने आंदोलन उसी दिन खत्म कर दिया था। लेकिन अब आक्रोश और हताशा इसलिए क्योंकि उस उस आश्वासन के बाद कई 10 दिन गुजर गए, ना तो हड़ताल और बर्खास्त अवधि का भुगतान मिला, न ही एरियर्स का भुगतान हुआ। अभी हालात ऐसे हैं कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को इस माह का मानदेय भी नहीं मिला है और इधर दिवाली जैसा महत्वपूर्ण त्यौहार सामने है। आंगनबाड़ीकर्मी हड़ताल और बर्खास्त अवधि का रूका हुआ एकमुश्त मानदेय मिल जाने से दिवाली के त्यौहार को धूमधाम से मनाने की ख्वाहिश रखी थी, लेकिन उनके हाथ में फिलहाल फूटी-कौड़ी नहीं है। और यही हाल उन स्व-सहायता समूहों की महिलाओं की भी है, जो पिछले कई माह से किराने की दुकान से उधारी ले-लेकर कुपोषण दूर करने के लिए गर्म भोजन बांट रही हैं, उन्हें भी चवन्नी नही मिली है। उनके पास किराने के कर्ज चुकाने के लिए पैसे हैं, न दिवाली मनाने के लिए। जाहिर है, ऐसे में आंगनबाड़ीकर्मियों और स्व-सहायता समूहों में मायूसी और हताशा आएगी ही। इन परिस्थितियों बावजूद भी आंगनबाड़ीकर्मियों को बीएलओ के रूप में हर दिन नए-नए फरमान दिए जा रहे हैं। उनसे पर्याप्त काम लिया जा रहा है। लेकिन आंगनबाड़ीकर्मियों का आरोप है कि उनकी मांगों और आवश्यकताओं पर सरकार बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले कई सालों से यूनिफॉर्म का वितरण नहीं किया गया था। इसके लिए भी कई बार मांग की गई। अभी दिवाली से ठीक पहले कुछ जिलों में जख्मों पर मरहम लगाने के अंदाज में आंगनबाड़ीकर्मियों को यूनिफॉर्म के रूप में साड़ियों का वितरण किया जा रहा है। लेकिन वे साड़ियां जख्मों पर मरहम नहीं, बल्कि ज़ख्मों पर नमक रगड़ने का काम कर रही हैं। कारण यह कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे साड़ियां बिल्कुल गुणवत्ताविहीन हैं और यूनिफार्म के रूप में पहनने लायक नहीं हैं। इसी तरह, आंगनबाड़ीकर्मियों को मोबाइल पर गरूड़ ऐप्प डाउनलोड करके इलेक्शन से संबंधित काम करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। उन्हीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर पोषण ट्रैकर ऐप्प मोबाइल में डाउनलोड करके आंगनबाड़ी केंद्र से संबंधित कार्यों के डाटा अपलोड करने का भी दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन विभाग की तरफ से अभी तक मोबाइल का वितरण नहीं किया गया है। यह बात अलग है कि संचालनालय के स्तर पर मोबाइल खरीदी (अभी सिर्फ खरीदी, वितरण कब होगा, पता नहीं) की तैयारियां जारी है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मौजूदा आक्रोश को लेकर आज ने महिला एवं बाल विकास विभाग के संचालनालय के अधिकारियों से विस्तृत बातचीत की। संचालनालय के अधिकारियों ने बताया कि हड़ताल अवधि और बर्खास्त अवधि की रुकी हुई राशि का आवंटन संचालनालय से पहले ही किया जा चुका है। सभी जिलों को निर्देशित किया गया है कि वह इस संबंध में आवश्यक जानकारी परियोजनाओं से मंगा कर, जितनी जल्दी हो सके आंगनबाड़ीकर्मियों के खातों में डिपाजिट करा दें। अफसरों ने बताया कि बस्तर के कुछ जिलों को छोड़ दें, तो बाकी सभी जिलों को यह राशि भेजी जा चुकी है। उन्होंने माना कि कुछ जिलों में परियोजना स्तर पर लेटलतीफी के कारण आंगनबाड़ीकर्मियों के बैंक अकाउंट तक राशि नहीं पहुंची होगी। लेकिन अफसरों ने यह भी आश्वस्त किया है कि आज ही सभी जिलों और सभी परियोजनाओं को इसमें तेजी लाने के निर्देश दिए जाएंगे, ताकि दिवाली से पहले सभी आंगनबाड़ीकर्मियों को हड़ताल अवधि की मानदेय राशि दिवाली से पहले मिल सके। संचालनालय की इतनी कोशिश से आंगनबाड़ीकर्मियों के घरों में दीवाली के मौके पर खुशियों के दीये तो जल ही जायेंगे, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि महिला एवं बाल विकास विभाग और राज्य सरकार आंगनबाड़ीकर्मियों और स्व-सहायता समूहों की इस मायूसी को गंभीरता और संवेदनशीलता से स्वीकार करें और ईमानदार कोशिश करें।