सम्पन्न हुआ लिबरा में सप्तदिवशीय श्री राम कथा… उमड़ा पूर्णाहुति में श्रद्धालुओं की भीड़…

 

 धौंराभांठा :- जिले के तमनार ब्लॉक अंतर्गत् ग्राम लिबरा में आयोजित श्री राम कथा का हुआ भव्य समापन।

कथा के आखिरी पड़ाव पर आध्यात्मिक प्रवक्ता दीदी मां साध्वी प्रज्ञा भारती जी ने श्री राम कथा का सारगर्वित ज्ञान को भक्तों को विस्तार से सुनाया। श्री राम प्रभु कि चरित्र का उदाहरण देकर बताया कि धर्म, सत्य, शौर्य, शील, संयम, विनम्रता आदि गुणों के प्रतीक भगवान राम का चरित्र युगों युगों तक मानव को सदाचरण के मार्ग पर चलना सिखाता रहेगा। राम ने अपने जीवन में छात्र-धर्म, पुत्र-धर्म, भ्रातृ-धर्म, पति-धर्म, मित्र-धर्म का पालन कर एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।

प्रभु श्री रामचन्द्र की जय…

प्रभु श्री राम के चरित्र से बहुत से बातें हमें सीखने को मिलती हैं, और असंख्य ऐसी शिक्षाएं मिलती है, जो हमें इस कलयुग में भी जीवन जीने कि कला सिखाती हैं । जिसको में कई भागों में आपको बताने का प्रयत्न की, और मै यह भी कह सकती हूं कि किसी भी मानव, मुनि, संत, या काव्य में उनके त्याग, उनके अनन्य प्रेम, व तपोबल के विषय में जानना कठिन है, मैं फिर भी कुछ बातें समझाने कि कोशिश कर रही हूँ।

प्रभु अनंत प्रभु कथा अनंता…
सर्वप्रथम अपने अनुज भाइयों से जो प्रभु श्री राम का अनन्य प्रेम था, वो आज के समय में संभव नहीं, हम इस कलयुग में अनावश्यक ही अपने अनुज पर क्रोध, या मित्या आरोप लगाते हैं, मगर श्री राम प्रभु ने सदैव अपने अनुज से प्रेम किया। पतिव्रता, ऐसा कहा जाता है कि मां सीता ने प्रभु श्री रामचन्द्र से प्रश्न किया था के आप भी अपने कुल के अन्य राजाओं के भाती एक से अधिक विवाह करेंगे तो प्रभु ने मां सीता को वचन दिया था, की राम सिर्फ सीता का है, ऐसा पतिव्रत धर्म निभाना आज संभव नहीं । पिता की आज्ञा को बिना प्रश्न ही सहर्ष स्वीकार किया, और 14 वर्ष तक वन वन विचरण किया ।जो स्वयं सृष्टि के रचयिता थे, मगर जिन्होंने साधारण मानव की भांति अपने रूप को सुशोभित किया, वे भरत मिलाप पर मासूम बालक की तरह रोएं, अपने प्रिय अनुज लक्ष्मण के मूर्छित होने पर भी ऐसे ही सहज रोने लगे। जब मां सीता ने स्वयं प्रजामत से राजमहल त्यागने का निश्चय किया, तब आप राज महल का भोग त्याग, जमीन पर सोए, व उस गम को मन में रखते हुए राजधर्म का पालन किया । मां सीता ने जब धरती में समाने का निश्चय किया तब भी क्रोध कि अग्नि, अपने तेज से व सीता के प्रति अपने स्नेह में वशीभूत होकर वह धरती को नष्ट भी कर सकते थे, मगर उस वक़्त भी उन्होंने इस गम को सहहर्ष स्वीकार किया ।

इन सब बातों से हमें यह सीख मिलती है कि जो स्वयं भगवान है, जो अपने भक्त के मन की सब बात को जानते है, संसार मे होने वाली हर घटना की जिन्हें जानकारी हैं फिर भी उन्होंने अपने गम को मानव की भांति स्वीकार किया, मगर हम मानव जरा से दुःख से विचलित हो जाते हैं, अनावश्यक ही अपने कर्मों को, विधाता को, कई बार भगवान को भी गलत बोलते हैं, हमें उस समय प्रभु का स्मरण कर उस दुःख का सामना करना चाहिए, ताकि उस दुःख का आसानी से हल निकल सके।

पूर्णाहुति की शुरुआत श्री राम कथा व्यास पीठ पर प्रभु श्रीराम के भव्य पूजा अर्चना से किया गया। पूजा की अंतिम क्षण में पण्डितों के द्वारा यजमानों एवं मेहमानों को पूर्णाहुति की आहुति डलवाया गया। तत्पश्चात विशेष आरती की गई।

आरती उपरांत भक्तों को महाभंडारा प्रसाद वितरण किया गया। प्रभु राम दया को पाने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु भक्तों ने यज्ञ में शामिल हो कर कथा श्रवण किये व दया रूपी महाप्रसाद ग्रहण किये।

इस अनुष्ठान को कराने में मानष प्रवक्ता गोकुलानंद पटनायक का मुख्य भूमिका रहा। जागेश सिदार एवं बजरंग अग्रवाल का विशेष सहयोग रहा।
सदानंद पटनायक, दयानंद पटनायक, परमानंद पटनायक, राजू चौधरी, रमेश बेहरा, नरेश यादव, मिनकेतन पटेल, विशेषर सिदार, पंचराम राठिया, कार्तिक राम सिदार, शशिभूषण बेहरा, रामेश्वर राठिया, गणपति निषाद, जयराम राठिया, शिवनारायण पटेल, लीतेश पटेल, भोजपाल पटेल आदि कार्यक्रम के मुख्य कार्यकर्ता थे। श्री राम कथा में बैठने वाले मुख्य यजमान संजय पटनायक बबलू सह पत्नी, मिनकेतन पटेल सह पत्नी एवं शशिभूषण बेहरा सह पत्नी थे।

श्री राम कथा के रसिक उड़ीसा प्रांत से भुक्ता बड़दरहा सारंगढ़ के बड़े नावापारा से गौंटिया साहू, रसोड़ा से वीरभंजन प्रधान, कनकतुरा भीखमपाली से सुखीश्याम पटनायक, पुषौर बजरंग महाराणा एवं घरघोड़ा सच्चिदानंद पटनायक, रायगढ़ से प्रताप रावत, गुलाब पटेल पधारे थे।

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