बालोद का युवा, दोनों पैर नहीं, नकली पैरों से नाप दिया रूस का माउंट एलब्रुस
रायपुर. मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। छत्तीसगढ़ के युवा पर्वतारोही चित्रसेन ने इन पंक्तियों को अपने बुलंद हौसले और दृढ़ संकल्प के बूते सार्थक कर दिखाया है। बालोद के चित्रसेन साहू ने कृत्रिम पैरों के सहारे रूस के माउंट एलब्रुस पर फतह हासिल की है। माउंट एलब्रुस पर फतह करने के बाद चित्रसेन ने हरिभूमि से अपना अनुभव साझा किया। उन्हाेंने कहा, शिखर तक पहुंचना आसान नहीं था। तापमान 15 से 25 डिग्री तक माइनस था। 70 किलोमीटर की रफ्तार से तेज हवाएं चल रही थी। उस पर सितम यह कि जबरदस्त स्नोफाॅल भी हो रहा था। कभी लगता कि अभियान विफल न हो जाए, लेकिन मैंने हौसला नहीं खोया। हर हालात का सामना करते हुए अंतत: मैंने शिखर पर पहुंच कर तिरंगा फहराने में सफलता प्राप्त कर ली। चित्रसेन इस उपलब्धि के बाद 27 अगस्त को भारत और 29 अगस्त को छत्तीसगढ़ लाैटेंगे।
चित्रसेन ने बताया, माउंट एलब्रुस की ऊंचाई 5642 मीटर यानी 18510 फीट है। इसको फतह करने के लिए हमारा अभियान 19 अगस्त से प्रारंभ हुआ था। शिखर पर हम 23 अगस्त को सुबह 10:54 बजे (मास्को के समयानुसार) और भारतीय समयानुसार 1.24 पीएम को पहुंचे। उन्होंने बताया, इस शिखर तक जाने के लिए उनको छत्तीसगढ़ की अमरीका स्थित एनआरआई संस्था नाचा (नॉर्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसिएशन) ने सहयोग किया। इस अभियान पर करीब साढ़े तीन लाख का खर्च आया। नाचा ने एक लाख का सहयोग किया। श्री साहू ने बताया, कुछ मदद दूसरे स्थानों से भी मिली। बाकी खर्च अपने पास से किया। चित्रसेन छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल में सिविल इंजीनियर हैं और नया रायपुर में पदस्थ हैं।
सात साल पहले गंवाए थे दोनों पैर श्री साहू बताते हैं 2014 में दुर्घटना में दोनों पैर खोने के बाद मेरे मन में भी यही स्वतंत्रता का भाव था, जो मुझे धीरे-धीरे पर्वतारोहण के क्षेत्र में ले गया। शुरुआत में छोटी-छोटी ट्रैकिंग की। ट्रैकिंग से माउंटेनियरिंग में तब्दील हुई। जब मैंने छोटे-छोटे ट्रैकिंग में जाना शुरू किया तो आत्मविश्वास बढ़ता गया। कृत्रिम पैर होने से आपको एक सामान्य व्यक्ति से 65 फीसदी ज्यादा ताकत और ऊर्जा लगती है। माउंटेन में जब अधिक ऊंचाई पर होते हैं तो ऑक्सीजन लेवल भी कम होता है और आप बाकी लोग की तुलना में थोड़े धीरे होते हैं, तो यह और मुश्किल हो जाता है। ऊपर से वातावरण का शरीर पर प्रभाव करने का डर अधिक रहता है किंतु मनोबल ऊंचा रहे तो सब संभव है।
पहले डबल अम्पुटी पर्वतारोही श्री साहू ने बताया, यह पर्वत फतह करने वाले वे देश के प्रथम डबल अम्पुटी पर्वतारोही (दोनों पैर कृत्रिम) हैं। इसके पहले किसी ने भी दोनों कृत्रिम पैरों के साथ इस पर्वत पर पहुंचने में सफलता प्राप्त नहीं की है। उन्होंने बताया इस अभियान में भी उन्होंने प्लास्टिक फ्री का संदेश दिया है। हर बार अपने अभियान के माध्यम से वे इस विषय का संदेश देते हैं। कई खेलों के भी खिलाड़ी चित्रसेन साहू पर्वतारोही होने के साथ-साथ राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल एवं राष्ट्रीय पैरा स्विमिंग के खिलाड़ी, ब्लेड रनर हैं। उन्होंने विकलांगों के ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी बहुत लंबी लड़ाई लड़ी है। शासन की अन्य नीतियों को अनुकूल बनाने के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही चित्रसेन साहू ने 14000 फीट से स्काई डाइविंग करने रिकॉर्ड बनाया है और सर्टिफाइड स्कूबा ड्राईवर है।
दो सफलता पहले की चित्रसेन साहू ने बताया, इस अभियान से पहले उन्होंने माउंट किलिमंजारो और माउंट कोजीअस्को फतह कर नेशनल रिकॉर्ड कायम किया है। माउंट किलिमंजारो अफ्रीका महाद्वीप एवं माउंट कोजिअसको ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप का सबसे ऊंचा पर्वत है। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वे देश के प्रथम डबल अम्पुटी है। दोनों पैर कृत्रिम होने की वजह से पर्वतारोहण में बहुत कठिनाइयां आती हैं। यह अपने आप बहुत बड़ा चैलेंज है, जिसको उन्होंने स्वीकार किया है। चार और लक्ष्य के लिए सरकार से मदद की दरकार श्री साहू कहते हैं, उनका लक्ष्य अब चार और शिखर तक पहुंचना है। वे बताते हैं सात महाद्वीप के सातों शिखर फतह करना चाहते हैं। तीन पर पहुंचने में तो सफलता मिल गई है, अब बचे चार पर पहुंचना है। यह लक्ष्य आसान नहीं है। इन शिखर तक पहुंचने में जहां कई चुनौतियां हैं। पैसा भी बहुत ज्यादा लगेगा। उन्हाेंने बताया, चार शिखर तक जाने में करीब एक करोड़ रुपए लग जाएंगे। इसके लिए यह जरूरी है कि हमारे राज्य की सरकार के साथ केंद्र सरकार से भी इसके लिए मदद मिले। इसी के साथ प्रायोजक भी जरूरी है, इसके बिन ये अभियान सफल नहीं हो सकते हैं।