
बेटों ने अपमान कर घर से निकाला तो इन बुजुर्गों ने जिंदा रहते किया अपना पिंडदान
गोरखपुर. पितृपक्ष में अपने पितरों का पिंडदान व श्राद्ध कर उन्हें याद करने और आशीर्वाद पाने का दिन होता है. कहा जाता है कि लोग तीन पीढ़ियों तक का पिंडदान पितृपक्ष में करते हैं. लेकिन जब अपने ही बच्चे जीते जी माता-पिता का तिरस्कार कर उन्हें घर से बेघर कर दें तो उनके मरने के बाद पिंडदान की उम्मीद क्यों रखनी. यही सोचकर वृद्धाश्रम के कुछ बुजुर्ग खुद ही जीते जी अपना स्वंय का पिंडदान कर रहे हैं. वो मरने के बाद भी बच्चों पर पिंडदान जैसे कर्मकांड का बोझ नहीं डालना चाहते.
खोराबार वृद्धा आश्रम की 72 वर्षीय वृद्धा, गोरखपुर के 68 वर्षीय वृद्ध और सहजनवा की 65 वर्षीय वृद्धा खुद ही अपना श्राद्ध और पिंडदान कर रहे हैं. उनका कहना है कि जिस बेटे पर हम गर्व किया करते थे, वो अपमानित करने लगा. एक दिन बहू-बेटे ने कह दिया कि वृद्धाश्रम चले जाओ. बार-बार तिरस्कार होने से बेहतर था वृद्धाश्रम आना. ऐसे ही कई बुजुर्ग अपने ही बच्चों से तिरस्कृत होकर जीते जी अपना पिंडदान कर रहे है क्योंकि मरने के बाद भी वह उनपर बोझ न रहे.
वृद्धाश्रम के मैनेजर रामसिंह ने बताया कि, यहां के वृद्धाश्रम में जिन बुजुर्गों की मौत हो चुकी है उनके बच्चे अंतिम संस्कार में भी नहीं आए. सभी यहां एक परिवार की तरह रहें. यहां उनका श्राद्ध और पिंडदान किया जाएगा. उन्होंने बताया कि, उनके यहां चार ऐसे बुजुर्ग हैं तो खुद अपना पिंडदान कर रहे हैं. आश्रम में इसकी पूरी व्यवस्था की गई है.बुजुर्गों ने अपना नाम सार्वजनिक न करने का अनुरोध किया है.
वृद्धाश्रम में रहने वाले इन चार बुजुर्गों ने अपना स्वंय श्राद्ध शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि, जिन बच्चों का भविष्य बनाने के लिए पूरी जिंदगी खर्च कर दी. वही बड़े होकर भूल गए. हम जिसपर गर्व किया करते थे उसने ही तिरस्कार करना शुरू कर दिया. अपमानित होकर घर से निकलने के बाद वृद्धाश्रम ही सहारा बना, अब यहीं प्राण त्यागेंगे. बेटों पर पर बुजुर्ग मां-बाप के कर्मकांड का बोझ नहीं डालना चाहते इसलिए खुद अपना पिंडदान और श्राद्ध कर रहे हैं.